जिन्दगी के इस अनोखे ढ़ेर से
ऐ मानव
तू ढ़ूँड़ता क्या है?
सोचता है तू
चन्द सिक्कों को लेकर
यही सार है
तेरी जिन्दगी का।
पर सोच खुद
जिन्दगी का यथार्थ क्या है?
छिपा है
जिन्दगी के साये में
बस तड़पना
मानव मन का,
मचलना दिल का।
पाकर हर खुशी
फिर....
तड़पता तू क्यों है?
सोच अब भी कि
तूने खोया क्या है?
तूने पाया क्या है?
खोया है तूने बहुत
पर...
न पा सका कुछ भी,
न समझा इस सार को,
बस समेटने में लगा है
हर चीज जहाँ की।
सोच अब भी कि
तू लाया क्या है?
न रहा है साथ किसी के
न तेरे साथ रहेगा।
खुशी का यह पल बस
क्षण भर को रहेगा
और अन्त में...
तू भी मिल जायेगा खाक में,
फिर सोच कि
पाकर इतना सब
तुझे फायदा क्या है?
संग्रह की समस्त कवितायेँ
01 - मेरा भारत महान
02 - रहस्य जीवन का
03 - भूख
04 - इच्छाएँ
05 - बचपन की बेबसी
06 - सत्यता
07 - श्मशान
08 - कुदरत की रचना
09 - नारी के विविध रूप
10 - मानव
11 - याद तुम्हारी
12 - मानवता की आस में
13 - ऐ दिल कहीं और चलें
14 - अकाट्य सत्य
15 - कोई अपना न निकला
16 - उस प्यारे से बचपन में
17 - मेरा अस्तित्व
18 - मजबूरी
19 - डर आतंक का
20 - मौत किसकी
21 - जीवन सफर
22 - नारी
23 - सुनसान शहर की चीख
24 - एक ज़िन्दगी यह भी
25 - पिसता बचपन
26 - ग़मों का साया
27 - खामोशी
28 - तुम महसूस तो करो
29 - अपने भीतर से
30 - फूलों सा जीवन
31 - सत्य में असत्य
32 - स्वार्थमय सोच
33 - पत्र
34 - मानव-विकास
35 - यही नियति है?
36 - अंधानुकरण
37 - अन्तर
38 - वृद्धावस्था
39- जीवन-चक्र
40- आज का युवा
41-करो निश्चय
42- ज़िन्दगी के लिए
43- घर
44- अनुभूति
45- कलम की यात्रा
46- सुखों का अहसास
47- कहाँ आ गए हैं
48- किससे कहें...
49- आने वाले कल के लिए
50- तुम्हारा अहसास
51- दिल के करीब
कविता संग्रह