बचपन की बेबसी


जीवन के सुनहरे अध्यायों का
पहला सबक बचपन,
पर मेरा बचपन भी
क्या बचपन था।
सूना सा एक गलियारा था,
न था कोई पल
खुशी का...बस
मौत सा मातम वहाँ था।
लाचारी, मजबूरी में ही बस
जीना ही सीखा था,
लगते सभी बेगाने थे
नहीं कोई अपना था।
न पूछो यह कि
कैसे समय बिताया था,
किसी तरह से मर-मर कर
अपने को जिलाया था।
पग-पग पर
अपमान का घूँट था पिया,
पर अपनी जिन्दगी को
खुदा की भेंट मानकर जिया।
फिर भी
क्या मिला इस जीने से?
लुटा गये हम सर्वस्य अपना
जीने की आस में।
बचपन की बेबसी को
जीने पर भी मिला
वही
शान्त, सूना सा गलियारा,
न था कोई शोर खुशी का,
न ही लहर किसी तरह की।
अब तो बस
जिये जा रहा हूँ
एक इसी चाह में,
कभी मिलने वाली खुशी की
और...एक आस
उस मातमी माहौल के हटने की,
दुख के बादल छटने की।

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01 - मेरा भारत महान 02 - रहस्य जीवन का 03 - भूख 04 - इच्छाएँ 05 - बचपन की बेबसी 06 - सत्यता 07 - श्मशान 08 - कुदरत की रचना 09 - नारी के विविध रूप 10 - मानव 11 - याद तुम्हारी 12 - मानवता की आस में 13 - ऐ दिल कहीं और चलें 14 - अकाट्य सत्य 15 - कोई अपना न निकला 16 - उस प्यारे से बचपन में 17 - मेरा अस्तित्व 18 - मजबूरी 19 - डर आतंक का 20 - मौत किसकी 21 - जीवन सफर 22 - नारी 23 - सुनसान शहर की चीख 24 - एक ज़िन्दगी यह भी 25 - पिसता बचपन 26 - ग़मों का साया 27 - खामोशी 28 - तुम महसूस तो करो 29 - अपने भीतर से 30 - फूलों सा जीवन 31 - सत्य में असत्य 32 - स्वार्थमय सोच 33 - पत्र 34 - मानव-विकास 35 - यही नियति है? 36 - अंधानुकरण 37 - अन्तर 38 - वृद्धावस्था 39- जीवन-चक्र 40- आज का युवा 41-करो निश्चय 42- ज़िन्दगी के लिए 43- घर 44- अनुभूति 45- कलम की यात्रा 46- सुखों का अहसास 47- कहाँ आ गए हैं 48- किससे कहें... 49- आने वाले कल के लिए 50- तुम्हारा अहसास 51- दिल के करीब कविता संग्रह