श्मशान


श्मशान
मानव का अंतिम ठहराव,
आता है यहाँ वैसी ही हालत में,
आया था जैसा इस जग में।
लिए हाथों को खाली,
सहारा काँधों का लिए।
इसी अंतिम पड़ाव पर
मानव
रह जाता है बिलकुल अकेला,
छोड़ जाता है सभी
सांसारिक ग़म और खुशियाँ।
थे जो कल तक उसके अपने
अब उन्हें भी नहीं जानता,
न उन्हें पहचानता।
सोकर चिरनिद्रा में अब
न जागने को कभी भी
मिलने को उसी तत्त्व में
बना था जिससे स्वयं कभी भी।
यही सत्य, परम सत्य है
इस मानव जिन्दगी का,
पर....वह
जानकर भी सब
रहता है अनजान बना।

संग्रह की समस्त कवितायेँ

01 - मेरा भारत महान 02 - रहस्य जीवन का 03 - भूख 04 - इच्छाएँ 05 - बचपन की बेबसी 06 - सत्यता 07 - श्मशान 08 - कुदरत की रचना 09 - नारी के विविध रूप 10 - मानव 11 - याद तुम्हारी 12 - मानवता की आस में 13 - ऐ दिल कहीं और चलें 14 - अकाट्य सत्य 15 - कोई अपना न निकला 16 - उस प्यारे से बचपन में 17 - मेरा अस्तित्व 18 - मजबूरी 19 - डर आतंक का 20 - मौत किसकी 21 - जीवन सफर 22 - नारी 23 - सुनसान शहर की चीख 24 - एक ज़िन्दगी यह भी 25 - पिसता बचपन 26 - ग़मों का साया 27 - खामोशी 28 - तुम महसूस तो करो 29 - अपने भीतर से 30 - फूलों सा जीवन 31 - सत्य में असत्य 32 - स्वार्थमय सोच 33 - पत्र 34 - मानव-विकास 35 - यही नियति है? 36 - अंधानुकरण 37 - अन्तर 38 - वृद्धावस्था 39- जीवन-चक्र 40- आज का युवा 41-करो निश्चय 42- ज़िन्दगी के लिए 43- घर 44- अनुभूति 45- कलम की यात्रा 46- सुखों का अहसास 47- कहाँ आ गए हैं 48- किससे कहें... 49- आने वाले कल के लिए 50- तुम्हारा अहसास 51- दिल के करीब कविता संग्रह