भूख


भूख
मानव तन से लिपटी सिमटी
एक ऐसी लड़ी
जो जोड़ती है
जिन्दगी में अनेक कड़ी।
कहीं भूख है रोटी की,
तो कहीं दौलत की,
किसी को भूख शोहरत की,
तो किसी को ताकत की,
कत्ल हुआ किसी का भूख में,
लुट गया मानव तन भी भूख में।
भूख ने दिये अंजाम हमेशा
अच्छे और बुरे,
मिली हमें आजादी
भूखे रहकर
आजादी की भूख में,
पर..
लुटा गये शांति अपनी
चन्द सिक्कों की भूख में।
कब खत्म होगी भूख
इस मानव मन की?
शायद आज...
शायद कल...या
शायद कभी नहीं?

संग्रह की समस्त कवितायेँ

01 - मेरा भारत महान 02 - रहस्य जीवन का 03 - भूख 04 - इच्छाएँ 05 - बचपन की बेबसी 06 - सत्यता 07 - श्मशान 08 - कुदरत की रचना 09 - नारी के विविध रूप 10 - मानव 11 - याद तुम्हारी 12 - मानवता की आस में 13 - ऐ दिल कहीं और चलें 14 - अकाट्य सत्य 15 - कोई अपना न निकला 16 - उस प्यारे से बचपन में 17 - मेरा अस्तित्व 18 - मजबूरी 19 - डर आतंक का 20 - मौत किसकी 21 - जीवन सफर 22 - नारी 23 - सुनसान शहर की चीख 24 - एक ज़िन्दगी यह भी 25 - पिसता बचपन 26 - ग़मों का साया 27 - खामोशी 28 - तुम महसूस तो करो 29 - अपने भीतर से 30 - फूलों सा जीवन 31 - सत्य में असत्य 32 - स्वार्थमय सोच 33 - पत्र 34 - मानव-विकास 35 - यही नियति है? 36 - अंधानुकरण 37 - अन्तर 38 - वृद्धावस्था 39- जीवन-चक्र 40- आज का युवा 41-करो निश्चय 42- ज़िन्दगी के लिए 43- घर 44- अनुभूति 45- कलम की यात्रा 46- सुखों का अहसास 47- कहाँ आ गए हैं 48- किससे कहें... 49- आने वाले कल के लिए 50- तुम्हारा अहसास 51- दिल के करीब कविता संग्रह