शृंगरित किया खुद कुदरत ने,
तुम उसकी सुंदर रचना हो।
मैं सोचूँ तुमको देख यही कि,
किन आँखों का सपना हो।
तेरी झील सी गहरी आँखों में,
खो जाने को मन करता है।
झील तो बस एक धोखा है,
जैसे बहता हुआ समन्दर हो।
जुल्फें जब तेरी लहरायें तो,
बदली सी छा जाती है।
बलखाती घटायें शरमायें,
जैसे जुल्फें उनकी मलिका हों।
चाँद सितारे सूरज सब,
दीदार को तेरे तरस रहे।
समय भी अपनी गति बदले,
जब-जब तेरा चलना हो।