जीवन सफर
सांसारिक नदी में
जीवन रूपी नैया चल रही है,
हम सभी,
इसके सवार हैं,
है सभी से भाईचारा किन्तु
साथ दो-चार पल का है।
उतरना है सभी को
मंजिल पर अपनी,
बिछुड़ना है उन्हीं से
जो थे संग अभी।
भूल जाते हैं
इतनी सी बात हम
जीवन के सफर में,
जुदा होना होता है हमें भी
उन पत्तों सा जो
अलग होते हैं पतझड़ में,
न मिल पाने को पुनः
उसी डाल से।
पर हम
अपनी अज्ञानता को ओढ़े,
ज्ञान चक्षुओं को मूँदे
नहीं समझना चाहते हैं
सत्य इस जीवन का।
निहित स्वार्थों की खातिर
भूल जाते हैं अपनी मंजिल को,
भाई-चारे को।
लग जाते हैं डुबोने एक दूजे को
उस मँझदार में....पर
लड़खड़ा कर किसी एक पल
डुबो देते हैं स्वयं को,
अपने अस्तित्व को,
मिटने को
इन्हीं सांसारिक लहरों में
औरों की तरह।
संग्रह की समस्त कवितायेँ
01 - मेरा भारत महान
02 - रहस्य जीवन का
03 - भूख
04 - इच्छाएँ
05 - बचपन की बेबसी
06 - सत्यता
07 - श्मशान
08 - कुदरत की रचना
09 - नारी के विविध रूप
10 - मानव
11 - याद तुम्हारी
12 - मानवता की आस में
13 - ऐ दिल कहीं और चलें
14 - अकाट्य सत्य
15 - कोई अपना न निकला
16 - उस प्यारे से बचपन में
17 - मेरा अस्तित्व
18 - मजबूरी
19 - डर आतंक का
20 - मौत किसकी
21 - जीवन सफर
22 - नारी
23 - सुनसान शहर की चीख
24 - एक ज़िन्दगी यह भी
25 - पिसता बचपन
26 - ग़मों का साया
27 - खामोशी
28 - तुम महसूस तो करो
29 - अपने भीतर से
30 - फूलों सा जीवन
31 - सत्य में असत्य
32 - स्वार्थमय सोच
33 - पत्र
34 - मानव-विकास
35 - यही नियति है?
36 - अंधानुकरण
37 - अन्तर
38 - वृद्धावस्था
39- जीवन-चक्र
40- आज का युवा
41-करो निश्चय
42- ज़िन्दगी के लिए
43- घर
44- अनुभूति
45- कलम की यात्रा
46- सुखों का अहसास
47- कहाँ आ गए हैं
48- किससे कहें...
49- आने वाले कल के लिए
50- तुम्हारा अहसास
51- दिल के करीब
कविता संग्रह