नारी


नारी,
अजब हालातों की मारी,
कहलायी जननी इस जग की
पर इस जग से ही हारी।
साये में
हरदम ही रहना
उसकी नियति बनी है,
कभी पिता के,
कभी पति के,
कभी बेटे के
साये तले पली है।
दिखलायी जिसने दुनिया हमको,
प्यार की भाषा सिखलायी,
महकाया जिसने हमारी
जीवन रूपी बगिया को,
काँटों से भर डाला लेकिन
उसी के सारे जीवन को।
अपने कष्टों-दुःखों को पीकर,
नयनों में पानी भर-भर कर,
आहों को अधरों में सीकर,
लोभ-लालच की बलिबेदी पर
कितनी बार चढ़ेगी वो?
कब तक बनती रहेगी सीता,
कब तक
अग्नि परीक्षा देगी वो?

संग्रह की समस्त कवितायेँ

01 - मेरा भारत महान 02 - रहस्य जीवन का 03 - भूख 04 - इच्छाएँ 05 - बचपन की बेबसी 06 - सत्यता 07 - श्मशान 08 - कुदरत की रचना 09 - नारी के विविध रूप 10 - मानव 11 - याद तुम्हारी 12 - मानवता की आस में 13 - ऐ दिल कहीं और चलें 14 - अकाट्य सत्य 15 - कोई अपना न निकला 16 - उस प्यारे से बचपन में 17 - मेरा अस्तित्व 18 - मजबूरी 19 - डर आतंक का 20 - मौत किसकी 21 - जीवन सफर 22 - नारी 23 - सुनसान शहर की चीख 24 - एक ज़िन्दगी यह भी 25 - पिसता बचपन 26 - ग़मों का साया 27 - खामोशी 28 - तुम महसूस तो करो 29 - अपने भीतर से 30 - फूलों सा जीवन 31 - सत्य में असत्य 32 - स्वार्थमय सोच 33 - पत्र 34 - मानव-विकास 35 - यही नियति है? 36 - अंधानुकरण 37 - अन्तर 38 - वृद्धावस्था 39- जीवन-चक्र 40- आज का युवा 41-करो निश्चय 42- ज़िन्दगी के लिए 43- घर 44- अनुभूति 45- कलम की यात्रा 46- सुखों का अहसास 47- कहाँ आ गए हैं 48- किससे कहें... 49- आने वाले कल के लिए 50- तुम्हारा अहसास 51- दिल के करीब कविता संग्रह