सुनसान शहर की चीख


आज शहर सुनसान बड़ा है,
आज नगर खामोश खड़ा है,
चुप हैं गलियाँ,
चुप हैं सड़कें,
चुप सारे दरो-दीवारें हैं,
लगता है जैसे कि
किस्मत के सारे मारे हैं।
दिन के उजियारे में भी
एक सन्नाटा सा फैला है,
कहीं धुँआ उठ रहा
जात-पात का,
कहीं नफरत की ज्वाला है।
मंदिर-मस्जिद के मलवे में
दफन कई अरमान पड़े हैं।
सन्नाटे के बीच
महज एक आवाज़ ही आती है,
किसी माँ के आँचल से,
किसी बाप के दिल से
बस चीख सुनाई दे जाती है,
आह सुनाई दे जाती है।
जगह-जगह अरमानों की,
भोले-भाले इंसानों की,
धधक रहीं कितनी लाशें हैं।
कहीं सुहागन का
सिंदूर है फैला,
कहीं टूटे पड़े खिलौने हैं।
मंडप टूटा, लुटी है डोली,
सारी दुनिया लुटी हुई है।
हृदय रक्तरंजित है मेरा,
मन भी जार-जार रोता है।
कहाँ हमारा घर है?
कौन हमारा अपना है?
खाली तन है,
खाली मन है,
समझ नहीं कुछ पाता हूँ,
खड़ा बीच में लाशों के
अपने को
पत्थर के बुत सा पाता हूँ।

संग्रह की समस्त कवितायेँ

01 - मेरा भारत महान 02 - रहस्य जीवन का 03 - भूख 04 - इच्छाएँ 05 - बचपन की बेबसी 06 - सत्यता 07 - श्मशान 08 - कुदरत की रचना 09 - नारी के विविध रूप 10 - मानव 11 - याद तुम्हारी 12 - मानवता की आस में 13 - ऐ दिल कहीं और चलें 14 - अकाट्य सत्य 15 - कोई अपना न निकला 16 - उस प्यारे से बचपन में 17 - मेरा अस्तित्व 18 - मजबूरी 19 - डर आतंक का 20 - मौत किसकी 21 - जीवन सफर 22 - नारी 23 - सुनसान शहर की चीख 24 - एक ज़िन्दगी यह भी 25 - पिसता बचपन 26 - ग़मों का साया 27 - खामोशी 28 - तुम महसूस तो करो 29 - अपने भीतर से 30 - फूलों सा जीवन 31 - सत्य में असत्य 32 - स्वार्थमय सोच 33 - पत्र 34 - मानव-विकास 35 - यही नियति है? 36 - अंधानुकरण 37 - अन्तर 38 - वृद्धावस्था 39- जीवन-चक्र 40- आज का युवा 41-करो निश्चय 42- ज़िन्दगी के लिए 43- घर 44- अनुभूति 45- कलम की यात्रा 46- सुखों का अहसास 47- कहाँ आ गए हैं 48- किससे कहें... 49- आने वाले कल के लिए 50- तुम्हारा अहसास 51- दिल के करीब कविता संग्रह