खाली पड़े बरतनों की खनक से
कुछ होने का धोखा खाकर,
लहू का घूँट ऊपर से पीकर,
वो लेट गया
प्रकृति प्रदत्त बिछौने पर,
ओढ़ कर आसमान की चादर
क्योंकि वह एक
गरीब आदमी है,
जो रोज ही कुँआ खोद
पानी पीता है,
दिन कटता है सारा
कुछ पाने की आस में,
काट देता है सारी रात
अगले दिन की आस में।
वही भूखे पेट की आग
जिससे था उसका
रात-दिन का साथ,
कभी-कभी खाली बरतनों में
ख्याली पुलाव पकाता था,
पेट की आग को शान्त
ऐसे ही कराता था।
यह है उसका
रोज का सिलसिला,
भूख से भोजन का
वही फासला।
यदि आज है कुछ खाने को
तो...कल का भरोसा नहीं,
क्या पता कल
खाली बरतनों की खनक भी
रहे न रहे!
संग्रह की समस्त कवितायेँ
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02 - रहस्य जीवन का
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04 - इच्छाएँ
05 - बचपन की बेबसी
06 - सत्यता
07 - श्मशान
08 - कुदरत की रचना
09 - नारी के विविध रूप
10 - मानव
11 - याद तुम्हारी
12 - मानवता की आस में
13 - ऐ दिल कहीं और चलें
14 - अकाट्य सत्य
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29 - अपने भीतर से
30 - फूलों सा जीवन
31 - सत्य में असत्य
32 - स्वार्थमय सोच
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34 - मानव-विकास
35 - यही नियति है?
36 - अंधानुकरण
37 - अन्तर
38 - वृद्धावस्था
39- जीवन-चक्र
40- आज का युवा
41-करो निश्चय
42- ज़िन्दगी के लिए
43- घर
44- अनुभूति
45- कलम की यात्रा
46- सुखों का अहसास
47- कहाँ आ गए हैं
48- किससे कहें...
49- आने वाले कल के लिए
50- तुम्हारा अहसास
51- दिल के करीब
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