अंधानुकरण

पश्चिमी चकाचैंध में भागते लोग,
अपने आपको मिटाते लोग,
क्या संस्कृति, क्या सभ्यता
नहीं कुछ भी अता-पता,
बस...
एक अंधानुकरण है,
थोड़ा सा झीना आवरण है
जो ढँके है हमारी सोच को,
हमारी विकृत सोच को।
जीवन को सहजीवन....
कभी सहज-जीवन बनाने की चर्चा,
कभी अपनी मर्यादाओं, संस्कारों को
खोने की कुचेष्टा।
लेकिन क्या यही सत्य है?
ईश्वर की रची
दो अनमोल कृतियों का
क्या यही मिलन है?
शारीरिक सौन्दर्य या मिलन...
मिलन नहीं एक तथ्य है....
जो जीवन है उसे जीने का
अपना एक सत्य है।
क्या मिलेगा खुली स्वीकृति देकर?
महिला-पुरुष को खुला संग देकर?
क्या बनाये रख सकेंगे हम
ढाँचा समाज का?
साँचा अपने अभिमान का?
जिस पर गर्व हमें ही नहीं
सारे संसार को है।
अर्द्धनारीश्वर का रूप
मात्र कल्पना नहीं
आपसी सामंजस्य की पुकार तो है
तो....
नाली के कीड़ों से रेंगकर हम
मर जायेंगे....गर अभी भी
खुली यौन संस्कृति से
न जीत पायेंगे।

संग्रह की समस्त कवितायेँ

01 - मेरा भारत महान 02 - रहस्य जीवन का 03 - भूख 04 - इच्छाएँ 05 - बचपन की बेबसी 06 - सत्यता 07 - श्मशान 08 - कुदरत की रचना 09 - नारी के विविध रूप 10 - मानव 11 - याद तुम्हारी 12 - मानवता की आस में 13 - ऐ दिल कहीं और चलें 14 - अकाट्य सत्य 15 - कोई अपना न निकला 16 - उस प्यारे से बचपन में 17 - मेरा अस्तित्व 18 - मजबूरी 19 - डर आतंक का 20 - मौत किसकी 21 - जीवन सफर 22 - नारी 23 - सुनसान शहर की चीख 24 - एक ज़िन्दगी यह भी 25 - पिसता बचपन 26 - ग़मों का साया 27 - खामोशी 28 - तुम महसूस तो करो 29 - अपने भीतर से 30 - फूलों सा जीवन 31 - सत्य में असत्य 32 - स्वार्थमय सोच 33 - पत्र 34 - मानव-विकास 35 - यही नियति है? 36 - अंधानुकरण 37 - अन्तर 38 - वृद्धावस्था 39- जीवन-चक्र 40- आज का युवा 41-करो निश्चय 42- ज़िन्दगी के लिए 43- घर 44- अनुभूति 45- कलम की यात्रा 46- सुखों का अहसास 47- कहाँ आ गए हैं 48- किससे कहें... 49- आने वाले कल के लिए 50- तुम्हारा अहसास 51- दिल के करीब कविता संग्रह