अपने भीतर से


आग,
बार-बार क्यों
हमारे ही घर में लगती है?
हर चीख क्यों
हमारे ही दिल से उठती है?
वो धुँआ जो
उठ रहा है,
अंदर ही अंदर कुछ
जल रहा है।
वो आग किसी नफरत की,
जला रही हमारी आत्मा को,
हमारी सोच को।
दिल
चीख-चीख कर कहता है
क्यों किसी से
नफरत का नाता है?
कौन है वह जो हमारा है?
कौन है वह जो बेगाना है?
हर इंसान का
यहाँ आना-जाना है।
क्यों एक पल की खुशी को
हम...लगा लेते हैं
गम सदा को?
क्यों हमारे अंदर का
प्रेम-स्नेह मिट गया?
क्यों इंसान
इंसान से कट गया?
थोड़ा सा प्यार अगर
हम आपस में बाँट लें,
आपस के गम मिटा लें,
तो..वो आग
हमारे घर में न लगे।
दिल की चीख
हमें न तड़पाये।
वो धुँआ
जो उठ रहा है
हमारे अंदर से,
हमारी सुलगती सोच से,
हमारी आत्मा से,
शायद तब न उठे।

संग्रह की समस्त कवितायेँ

01 - मेरा भारत महान 02 - रहस्य जीवन का 03 - भूख 04 - इच्छाएँ 05 - बचपन की बेबसी 06 - सत्यता 07 - श्मशान 08 - कुदरत की रचना 09 - नारी के विविध रूप 10 - मानव 11 - याद तुम्हारी 12 - मानवता की आस में 13 - ऐ दिल कहीं और चलें 14 - अकाट्य सत्य 15 - कोई अपना न निकला 16 - उस प्यारे से बचपन में 17 - मेरा अस्तित्व 18 - मजबूरी 19 - डर आतंक का 20 - मौत किसकी 21 - जीवन सफर 22 - नारी 23 - सुनसान शहर की चीख 24 - एक ज़िन्दगी यह भी 25 - पिसता बचपन 26 - ग़मों का साया 27 - खामोशी 28 - तुम महसूस तो करो 29 - अपने भीतर से 30 - फूलों सा जीवन 31 - सत्य में असत्य 32 - स्वार्थमय सोच 33 - पत्र 34 - मानव-विकास 35 - यही नियति है? 36 - अंधानुकरण 37 - अन्तर 38 - वृद्धावस्था 39- जीवन-चक्र 40- आज का युवा 41-करो निश्चय 42- ज़िन्दगी के लिए 43- घर 44- अनुभूति 45- कलम की यात्रा 46- सुखों का अहसास 47- कहाँ आ गए हैं 48- किससे कहें... 49- आने वाले कल के लिए 50- तुम्हारा अहसास 51- दिल के करीब कविता संग्रह