मेरा अस्तित्व
मैं क्या था? क्या हूँ?
सोचता हूँ।
स्वयं अपने ही प्रश्नजाल में
उलझ जाता हूँ।
खिड़की से जाती दूर नजर,
दिखाई एक ठूँठ देता है,
कभी मुझे उसमें अपना
अक्श नजर आ जाता है।
सँवारा गया था मैं भी,
कभी...
किसी नन्हे पौधे की तरह,
सींचा गया था
प्यार, दुलार की बारिश से,
समेटा था अपने अंक में
अपने अपनों को
ठीक वैसे ही जैसे कभी
उस ठूँठ ने संवारा होगा
पंछियों के
घोंसलों और बसेरों को।
पर आज जब...
डर जाता हूँ अपने आपसे,
घबरा जाता हूँ उस शोर से
जो प्रविष्ट हो कानों से मेरे
चीर जाता है इस दिल को।
शोर
अकेलेपन की भयावहता का,
अपनों के दूर जाने की पदचापों का।
तब लेकर साथ तन्हाई का
मैं चला जात हूँ
दूर वहाँ।
इस बुढ़ापे की काया को
टिका देता हूँ उस ठूँठ से,
जो साथी है मेरा।
सह रहा है तन्हाई को
मेरी ही तरह,
बाँट कर हर गिले-शिकवे अपने
दिल को हलका कर लेता हूँ।
कभी इसके भी अंग-प्रत्यंग
मेरी ही तरह हरे-भरे थे,
पर..आज यह भी
मेरी ही तरह ठूँठ बना है,
या कहें कि
मैं ही इसके समान हो गया हूँ।
समझ नहीं पाता पर
समानता है कहीं न कहीं
मुझमें और हरे-भरे जंगल में खड़े
इस ठूँठ में।
संग्रह की समस्त कवितायेँ
01 - मेरा भारत महान
02 - रहस्य जीवन का
03 - भूख
04 - इच्छाएँ
05 - बचपन की बेबसी
06 - सत्यता
07 - श्मशान
08 - कुदरत की रचना
09 - नारी के विविध रूप
10 - मानव
11 - याद तुम्हारी
12 - मानवता की आस में
13 - ऐ दिल कहीं और चलें
14 - अकाट्य सत्य
15 - कोई अपना न निकला
16 - उस प्यारे से बचपन में
17 - मेरा अस्तित्व
18 - मजबूरी
19 - डर आतंक का
20 - मौत किसकी
21 - जीवन सफर
22 - नारी
23 - सुनसान शहर की चीख
24 - एक ज़िन्दगी यह भी
25 - पिसता बचपन
26 - ग़मों का साया
27 - खामोशी
28 - तुम महसूस तो करो
29 - अपने भीतर से
30 - फूलों सा जीवन
31 - सत्य में असत्य
32 - स्वार्थमय सोच
33 - पत्र
34 - मानव-विकास
35 - यही नियति है?
36 - अंधानुकरण
37 - अन्तर
38 - वृद्धावस्था
39- जीवन-चक्र
40- आज का युवा
41-करो निश्चय
42- ज़िन्दगी के लिए
43- घर
44- अनुभूति
45- कलम की यात्रा
46- सुखों का अहसास
47- कहाँ आ गए हैं
48- किससे कहें...
49- आने वाले कल के लिए
50- तुम्हारा अहसास
51- दिल के करीब
कविता संग्रह