मानवता की आस में
मानवता भी मानवीयता छोड़
अमानवीयता पर उतरी तो
मानव मन हुआ
चिंतित, परेशान।
व्याकुल होकर पूछा-‘‘आखिर क्यों?’’
मानवीयता ने
नासमझ मन को समझाया,
‘‘जो दिख रही है अमानवीयता
कल तक थी मानवीयता...
सत्य है।
यह काल का चक्र है,
घूमता है सभी के ऊपर से।
कल घूम रहा था
मानवीयता पर
तो
आज घूम रहा है
अमानवीयता पर।
पड़ाव हैं ये सभी
कालचक्र के,
रुक कर एक क्षण
फिर बढ़ता है आगे को।
पर निराश न हो मानव मन,
तू क्यों चिन्ता करता है?
यह चक्र आगे भी घूमेगा,
कभी यह मानवीयता पर
फिर रुकेगा।
तब तू फिर से
मानवीयता की छांव में पलेगा।’’
शंकित मानवीय मन
न माना,
शंका को दोहराया-‘‘आखिर कब?’’
अब नहीं था
कोई जवाब इसका,
थी अमानवीयता को ओढ़ती
मानवीयता भी निरुत्तर
और मानवीय मन
खड़ा था
अमानवीयता की धूप में,
कभी आने वाली
मानवता की छाँव की आस में।
संग्रह की समस्त कवितायेँ
01 - मेरा भारत महान
02 - रहस्य जीवन का
03 - भूख
04 - इच्छाएँ
05 - बचपन की बेबसी
06 - सत्यता
07 - श्मशान
08 - कुदरत की रचना
09 - नारी के विविध रूप
10 - मानव
11 - याद तुम्हारी
12 - मानवता की आस में
13 - ऐ दिल कहीं और चलें
14 - अकाट्य सत्य
15 - कोई अपना न निकला
16 - उस प्यारे से बचपन में
17 - मेरा अस्तित्व
18 - मजबूरी
19 - डर आतंक का
20 - मौत किसकी
21 - जीवन सफर
22 - नारी
23 - सुनसान शहर की चीख
24 - एक ज़िन्दगी यह भी
25 - पिसता बचपन
26 - ग़मों का साया
27 - खामोशी
28 - तुम महसूस तो करो
29 - अपने भीतर से
30 - फूलों सा जीवन
31 - सत्य में असत्य
32 - स्वार्थमय सोच
33 - पत्र
34 - मानव-विकास
35 - यही नियति है?
36 - अंधानुकरण
37 - अन्तर
38 - वृद्धावस्था
39- जीवन-चक्र
40- आज का युवा
41-करो निश्चय
42- ज़िन्दगी के लिए
43- घर
44- अनुभूति
45- कलम की यात्रा
46- सुखों का अहसास
47- कहाँ आ गए हैं
48- किससे कहें...
49- आने वाले कल के लिए
50- तुम्हारा अहसास
51- दिल के करीब
कविता संग्रह