सत्य में असत्य


चिरन्तन सत्य की कोख से
जन्मा असत्य किस प्रकार?
यह एक प्रश्न है विवाद का
कि
वह सत्य जो
स्वयं सत्य है
उसने कैसे असत्य को जन्मा?
कैसे उसे सहेजा?
कैसे उपजा?
यह सच है कि
हम मानव हैं
पर उसमें छुपा असत्य
कि हममें ‘अब’ मानवता है।
यह सत्य है कि कभी मानवता थी,
पर आज भी जिन्दा है
बात एक असत्यता है।
मानव की तरक्की,
उसका विकास एक सत्यता है, पर
यह विकास एक असत्यता ही है
एक छलावा है,
एक दिखावा है।
नैतिक मूल्यों का पतन,
हमारे चरित्र का हनन,
क्या यही तरक्की है?
क्या यही विकास है?
शायद सत्य की कोख से जन्मा
एक असत्य है।
नारी का होना भी
इस संसार में
एक सत्यता है।
पर नारी की उन्नति,
उसकी तरक्की एक असत्यता है।
उसकी मुक्ति
इसी सत्य में छिपी असत्यता है।
हमारा हर कदम,
हमारी हर नीति,
हमें कहीं न कहीं छलती है,
स्वयं हमें ही ठगती है।
क्या-क्या दिखायें,
और क्या-क्या छिपायें,
हर बात सत्य है,
हर बात असत्य है।
जो सत्य है, वही असत्य है।
फिर भी लगे रहते हैं
इसी प्रयत्न में,
इस यत्न में कि
अपने कारनामों,
अपनी असत्यता को
किस प्रकार दबा सकें।
सत्य के आवरण में छिपा सकें।
जबकि हम सब फिर भी जानते हैं
कि क्या सत्य है.....
और....
क्या असत्य है।

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