सुखों का अहसास

आंखों में सजा कर
भविष्य के सुनहरे पल,
मन उड़ चला है दूर कहीं
क्षितिज के उस पार,
है बसा जहाँ बस सपनों का संसार।
इस जहाँ के कटुतम सत्यों,
कड़वे यथार्थों को भूल कर,
दो पल को आशा का संचार कर
पकड़ लेना चाहता है इस तथ्य को
जो सत्य नहीं कल्पना है,
इस मन की यही विडम्बना है.....
जो है यथार्थ,
उसके कड़वे, तीखे दुखित आवरण के पीछे
छिपे सुख को नहीं खोज पाता है,
खुशियों की तलाश में बस
सपनों को ही सजाता है।
भोर की पहली किरण से लेकर
रात की उजियारी चाँदनी तक
सह कर हर गम,
रोती आंखों के सहारे मुस्कुरा कर
जीना चाहता है अगले दिन के लिए,
कुछ पाना चाहता है अपने कल के लिए।
आह....! पर क्या करे ये मन
जिसे इस जीवन में
पग-पग पर मिल रहा है
दुःख, करुणा, अपमान तिरस्कार,
झूठी आँखों और बातों का संसार।
नहीं समर्थ है आज वह
तोड़ कर.....
इस स्वार्थपरक संसार के
कटुतम आवरण को,
पा सके इस जीवन के गर्भ में छिपे
खुशियों के खजाने को।
शायद तभी...
जो अप्राप्य है
इस जीवन में,
इस संसार में,
उसे सपनों की दुनिया में,
कल्पना के लोक में संवारता है,
मन को दूर
क्षितिज के पार ले जाकर
कल्पनातीत, क्षणभंगुर खुशियों के सहारे हंसाता है.....
भले ही एक झटके में
बिखर जाए यह सपनों का संसार,
टूट जाए
यथार्थ और कल्पना के बीच
आशा का संचार।
लेकिन मन तो प्राप्त कर लेता है
मनमाफिक संसार....
दुखते क्षणों के बीच सुखों का अहसास।

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