रूठ कर जिन्दगी मेरी
चली गई कहीं दूर मुझसे,
उसे फिरसे मना कर
पास लाने की जरूरत है.
तनहा किस तरह और
कब तलक
यूँ ही चलता रहूँगा,
जिन्दगी को ही पास लाकर
हमसफ़र बनाने की जरूरत है.
शोर उठते रहे कदम दर कदम
मेरी आवाज़ को हर शोर दवाते ही रहे।
किससे करते हम
अपने दिल की हालत बयान,
लोगों के दिल से दिल
मिलते ही नहीं।
कहने को हाले दिल मुझे
दूसरा दिल बनाने की जरूरत है।
खामोशी से बैठा किनारे पर
बहती नदी को देखता ही रहा.
अस्थिर, अचल यूँ खामोश
पत्थर सा बना बस पड़ा ही रहा.
बहती नदी के धारे में बह कर
निकल गए हमारे एक-एक दिन......
एक-एक पल.....
एक-एक क्षण......
खाली हाथों में
हम समेटे ख़ुद को
जड़ विराम महसूस करते ही रहे।
नदी के धारे सा बहने को
ख़ुद में गति लाने की जरूरत है।
सोचा करता था कभी
शून्य में विचरते हुए
कि मर्म क्या है इस जीवन में?
क्या है सत्य और क्या है तत्त्व?
क्या रह गया है शेष इस जीने में?
दौड़ती दुनिया........ भागते लोग......
क्या निकल गया इनके हाथों से...?
शून्य में तकते, विचरते....
कुछ खोजते,
जीवन के सत्य को ढूँढने में,
जिंदगी का मर्म ही समझने में
कुचल कर रह गया।
दौड़ती-भागती भीड़ के क़दमों तले
क्षत-विक्षत शरीर,
लहुलुहान आत्मा होकर एकाकार,
मिल गए इस धारा से,
करने को ख़ुद को जाग्रत,
आज उन्हें फिरसे उठाने की जरूरत है।
ज़िन्दगी के लिए
संग्रह की समस्त कवितायेँ
01 - मेरा भारत महान
02 - रहस्य जीवन का
03 - भूख
04 - इच्छाएँ
05 - बचपन की बेबसी
06 - सत्यता
07 - श्मशान
08 - कुदरत की रचना
09 - नारी के विविध रूप
10 - मानव
11 - याद तुम्हारी
12 - मानवता की आस में
13 - ऐ दिल कहीं और चलें
14 - अकाट्य सत्य
15 - कोई अपना न निकला
16 - उस प्यारे से बचपन में
17 - मेरा अस्तित्व
18 - मजबूरी
19 - डर आतंक का
20 - मौत किसकी
21 - जीवन सफर
22 - नारी
23 - सुनसान शहर की चीख
24 - एक ज़िन्दगी यह भी
25 - पिसता बचपन
26 - ग़मों का साया
27 - खामोशी
28 - तुम महसूस तो करो
29 - अपने भीतर से
30 - फूलों सा जीवन
31 - सत्य में असत्य
32 - स्वार्थमय सोच
33 - पत्र
34 - मानव-विकास
35 - यही नियति है?
36 - अंधानुकरण
37 - अन्तर
38 - वृद्धावस्था
39- जीवन-चक्र
40- आज का युवा
41-करो निश्चय
42- ज़िन्दगी के लिए
43- घर
44- अनुभूति
45- कलम की यात्रा
46- सुखों का अहसास
47- कहाँ आ गए हैं
48- किससे कहें...
49- आने वाले कल के लिए
50- तुम्हारा अहसास
51- दिल के करीब
कविता संग्रह