करो निश्चय

सफलता की ओर बढ़ते कदमों को
मत रोको,
मंजिल की ओर बढ़ते कदमों को
मत मोड़ो।
सफलता की राह
बहुत संघर्षों से मिलती है,
छेड़ी है जो संघर्ष की जंग
उसे बीच में मत छोड़ो।
अनायास रुकने वाले कदमों को
फिर से उठा पाना
सम्भव नहीं,
वे लोग फिर न बढ़ने देंगे
मंजिल को
जो बनाते रहे थे राह में
गड्ढों को।
ये सारा जहाँ तुम्हारे रुकने पर
प्रश्नों और निगाहों की मार से
लहुलुहान कर देगा।
तुम्हारे रुकने का
मंतव्य समझे बिना ही
तुम्हें नाकारा सिद्ध कर देगा।
कर देगा तुम्हें मजबूर
फिर उसी जगह ठहर जाने को,
न आगे बढ़ पाने को।
फिर भी रोकना चाहते हो
अपने कदमों को,
एक पल को, तो
किसी की मदद के लिए रोको,
गिरते को उठाने को रोको।
निःस्वार्थ किसी के लिए
खुद को झुकाना बुरा नहीं।
मगर याद रखो कि
इस जहाँ ने हमेशा
उगते सूरज को नमन किया है।
खुद को
संघर्ष की आग में तपा कर
सूरज बनाओ,
इस जहाँ से
दूर अँधियारा भगाओ।
और फिर कोने-कोने में
तुम्हारा तेज होगा,
ये सारा जहाँ
तुम्हारे आगे नतमस्तक होगा।

संग्रह की समस्त कवितायेँ

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