अनुभूति

बचपन में कभी-कभी
सोचा करता था मैं
उन क्षणों में
जब किसी बूढी माँ को देखता था
अपनी बूढी काया को
किसी तरह बस हिलाते-डुलाते,
झुकी कमर, कांपते हाथ और हिलता सर,
टिकाये एक लाठी के सहारे।
खडी होकर सड़क के किनारे
बेबस, असहाय, याचनापूर्ण निगाहों से
मांगती थी सहारा,
उस पार जाने के लिए।
आसरा उसे एक हाथ का,
जो ले जा सके
निर्विध्न, विश्वासपूर्वक
पार सड़क के।
तब मैं अपने नन्हे हाथों को
उसका सहारा बनाता,
छोटी सी किंतु
विश्वासमयी पकड़ के सहारे
चल पड़ती थी वह धीरे-धीरे पीछे-पीछे।
मन में ढेरों सवाल उमड़ते,
छोटे से मन-मष्तिष्क की दुनिया को
झंकृत करते,
क्या इस माँ का कोई सहारा नहीं?
बन सके जो इसकी लाठी वो सहारा नहीं?
क्यों हो जाती है एक माँ की ये हालत?
क्यों अपने हाथ होते हुए भी
है तरसती गैरों के सहारे को?
सवालों के बीच बुधिया माँ
विदा हो जाती ढेरों आशीष देकर,
इसी तरह का व्यवहार
सदा-सदा करने को कह कर।
मैं नादान - चुपचाप, खामोश,
आंखों में खुशी का
एक प्यारा सा संसार लिए
चल पड़ता अपनी डगर पर।
मन के झंझावात को कई बार
अपनी माँ के सामने रखा,
माँ ने आंखों-आंखों में बहुत कुछ कहा,
जो तब तो लगता था
अनसुलझा, अनसमझा।
सोचा करता था तब
कि क्या कभी मेरी माँ भी
बुढिया माँ की तरह
लाठी के सहारे चला करेगी?
एक-एक छोटे से काम के लिए
किसी और की ओर देख रही होगी?
विचारों में गुम,
सवालों को लेकर
आज इस पडाव पर आ गया हूँ,
जहाँ कि माँ वृद्धा, मैं युवा हूँ।
तब देख कर स्वयं अपने आप को,
समझ कर माँ और अपने बीच
पैदा गुमसुम एहसास को,
जान गया कि
क्यों हर बूढी माँ चाहती है
एक लाठी का सहारा?
क्यों उसकी जर्जर काया को रहता है
किसी और का सहारा?
बेटे के रूप में छिपी होती है
पुरूष की छाया,
बेटा होते हुए भी बेटा
बन जाता है किसी का पति,
किसी का पिता
और उलझ जाता है
अपने परिवार में, अपने आप में।
भूल कर सारा आगा-पीछा,
लग जाता है स्वार्थ-पूर्ति में।
भूल जाता है अपनी माँ को,
भूल जाता है
अपने बचपन की घटना को,
पति-पिता रूपी पुरूष छाया में
मिटा देता है
अपने पुत्र होने का अस्तित्व,
परन्तु माँ होती है सिर्फ़ माँ।
होते हुए भी पुत्री, किसी की पत्नी
नहीं भूलती है अपना ममत्व,
नहीं मिटाती है अपना अस्तित्व।
वही विशाल ह्रदय,
वही ममता का आँचल,
वही दुलार,
इसी ममतामयी छवि के कारण ही
वह देखती है हर जगह
बस अपने पुत्र की छवि
और हर हाथ के सहारे
पा लेना चाहती है
अपने पुत्र के सहारे की काल्पनिक अनुभूति।

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